Vastavik sankhya kise kahte hai ( वास्तविक संख्या किसे कहते है ? ) संख्यायों से तो आप सब परिचित होंगे। चलिये आज वास्तविक संख्या के बारे में चर्चा करते है। कक्षा 9 वीं तथा 10 वीं कक्षा में महत्वपूर्ण यह अध्याय जितना मनोरंजक तथा उतना पेचीदा भी है। आइये समझते है वास्तविक संख्या किसे कहते है ? वास्तविक संख्या की परिभाषा तथा उदाहरण के साथ समझने के लिए हमारे साथ जुड़े रहिये।
वास्तविक संख्या किसे कहते है ?
वास्तविक संख्या परिमेय तथा अपरिमेय संख्या की समष्टि/समूह होता है। अर्थात हर परिमेय और अपरिमेय संख्या एक वास्तविक संख्या होते है। वास्तविक संख्या के समूह तथा सेट को अंग्रेजी अक्षर R द्वारा दर्शाया जाता है। वास्तविक संख्या को हम दो हिस्सों में बाँट सकते है, परिमेय संख्या( rational numbers) और अपरिमेय संख्या(Irrational numbers)।
वास्तविक संख्याओं में प्राकृतिक संख्या, पूर्ण संख्या, पूर्णांक संख्या, परिमेय संख्या तथा अपरिमेय संख्या सभी शामिल है। चलिये इस बारे में विस्तार से चर्चा करते है।
प्राकृतिक संख्या –
प्राकृतिक संख्या वे संख्याएँ होती है जिन्हें हम गिनने के साथ साथ देख सकते है। उदाहरण स्वरूप हम 1 की गिनती करने के साथ साथ 1 से किसी चीज को दर्शा भी सकते है, परंतु 0 को हम गिनती में तो इस्तेमाल करते है मगर इसका कोई अस्तित्व नहीं है।
1 से लेकर आगे सभी संख्याएँ प्राकृतिक संख्या कहलाता है। 1,2,3,4,5,6…….. आदि प्राकृतिक संख्या है।
पूर्ण संख्या –
भले ही शून्य का अकेले में कोई मतलब न बनता हो मगर किसी संख्या के आगे लगने पर यह उसके स्थान तथा मूल्य को बढ़ा देता है। प्राकृतिक संख्या में शून्य को मिलाकर पूर्ण संख्या बनता बनता है।
उदाहरण-0,1,2,3,4…..99,100,101 आदि।
पूर्णांक संख्या –
प्राकृतिक संख्या और शून्य तथा पूर्ण संख्या और सभी प्राकृतिक संख्याओं के ऋणात्मक राशि को लेकर पूर्णांक संख्या बना है। इसे आप पूर्ण संख्याओं के समष्टि और प्राकृतिक संख्याओं के ऋणात्मक मान के समष्टि के तौर पर भी वर्णन कर सकते है।
उदाहरण- ……-5,-4,-3,-2,-1,01,2,3,4,5…….
परिमेय संख्या –
परिमेय संख्या वे संख्याएँ होती हो जो एक पूर्णांक संख्या को दूसरे पूर्णांक संख्या से भाग करने पर( शून्य/0 को छोड़ कर) जो लघुतम निकलता है उसे पूर्णांक संख्या कहते है।
परिमेय संख्या को p/q के रूप तथा अंश के रूप में लिखा जाता है। इसमें धनात्मक तथा ऋणात्मक राशि होते है।
उदाहरण – 2/3, 4/5, 7/9, -6/4, -3/9 आदि
अपरिमेय संख्या –
अपरिमेय वो वास्तविक संख्या है जो परिमेय न हो और उन्हें p/q के रूप में लिखा न जा सके उन्हें अपरिमेय संख्या कहते है।
उदाहरण -√2, √3,√5,√7,√8 आदि
वास्तविक संख्याओं के गुणधर्म –
संवृत नियम –
किसी भी दो परिमेय संख्या जोड़ तथा गुणा हमेशा एक परिमेय संख्या ही होगा । इसे संवृत नियम या धर्म कहा जाता है।
क्रमबिनिमय धर्म/नियम-
किसी भी दो वास्तविक संख्याओं के जोड़ का परिणाम एक सामान ही होगा चाहे किसी भी क्रम में उससे जोड़ा जाए। उदाहरण के लिए , 5+2=2+5 इसका उत्तर 7 ही होंगे। इसीलिये m+n=n+m (अगर m और n दोनों वास्तविक संख्या हो)
यह नियम गुणा करने पर भी सामान रहता है। 5×2=2×5 उत्तर समान ही होंगे।
साहचर्य गुणधर्म –
किसी भी 3 वास्तविक संख्या को किसी भी कर्म से जोड़ या गुणा करने पर उत्तर एक सामान ही होते है।
जोड़-
m+(n+p)= n+(m+p)= p+(m+n) , किसी भी क्रम में संख्याओं को लिखने पर सामान उत्तर ही मिलेंगे।
3+(4+5) = 4+(3+5) = 5+(3+4) उत्तर 12 ही होंगे।
वितरण गुणधर्म–
अगर तीन परिमेय संख्या जो प्राकृतिक संख्याओं का नियम पालन करते हो तो वे वितरण गुणधर्म भी प्रदर्शन करते है।
p (q+r) = pq +qr होगा, चलिये उदाहरण के साथ समझते है।
5(6+7)=5×6+5×7
5(13)=30+35
65=65
आपने क्या सीखा ?
हमे आशा है की आपको Vastavik sankhya kise kahte hai ( वास्तविक संख्या किसे कहते है ? ) विषय के बारे में दी गई जानकारी अच्छी लगी होगी। अगर आपको इस विषय के बारे में कोई Doubts है तो वो आप हमे नीचे कमेंट कर के बता सकते है। आपके इन्ही विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिलेगा।
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