0 ki khoj kisne ki ( 0 की खोज किसने की थी ) 0 या शून्य वेसे इसका कोई मूल्य नहीं होता है। मगर किसी संख्या तथा अंक के साथ जुड़ जाने पर यह उसके मान को 10 गुणा बढ़ा देता है। सोचिये अगर 0 न होता तो हम 10 कैसे लिखा करते! अगर 10 ही नहीं लिख पाते तो तो उसके आगे की गिनती हम कैसे करते? यह सवाल दिमाग में काफी हलचल मचा सकती है। पर यह कभी न भूले हम भारतीय है, कुछ भी कर सकते है।
दोस्तों, आप सबको हम आजके इस लेख में स्वागत करते है जिसका शीर्षक है “0 कि खोज किसने की थी?” आज हम बात करेंगे शून्य की इतिहास के बारे, तथा इसके उत्पति और अविष्कार के बारे में। यह सब जानने के लिए हमारे साथ जुड़े रहिये और पोस्ट को पूरे पढिये।
शून्य
0 एक ऐसा गणितीय अंक है जिसका कोई मूल्य नहीं होता। किसी भी गणितीय मूल्य का उपस्थिति न होना ही शून्य है। यह एक ऐसी संख्या है जो पूर्णांक, परिमेय तथा धनात्मक और ऋणात्मक संख्या भी है। इसके परिकल्पना हजारों साल पहले ही हो चूका था.
मगर इसका लिखित रूप नहीं था। क्यों के रामायण में हमने पढ़ा है कि रावण के 10 सर था, और महाभारत में गांधारी के 100 पुत्र थे । अगर शून्य का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था तो हजारों सालों पहले के इन पुराणों में यह गिनती कैसे होती थी!
0 से पहले की गिनती –
प्रारंभिक समय में लोगों को 10 तक का ज्ञान तो जरूर था, क्यों के हमारे हाथों में 10 उंगलियां होती है। परंतु जब अंको का इज़ात हुआ तो वे शून्य को लिख नहीं पाते तथा मानते नहीं थे। क्यों के शून्य एक ऐसा अंक था जिसका कोई मूल्य नहीं था।
भला यह गणित का केस अंक है जिसका कोई मूल्य ही नहीं है! इसीलिए कई सारे सभ्यता शून्य को माना नहीं करते थे। लेकिन शून्य के आवश्यकता के स्थान पर वे कुछ खास तरह के निशान, खली स्थान तथा संख्या के नीचे बिंदु के इस्तेमाल से उसे पहचानते थे।
उस ज़माने में ऐसे निशान गणित में स्थान धारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। क्यों के शून्य का इस्तेमाल के बिना इतने बड़े पिरामिड, मंदिर तथा चीन का दीवार जैसी कलाकृति को बनाना इतना आसान नहीं था।
शून्य के आविष्कारक –
हम आज सब शून्य के आविष्कारक के रूप में महान भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त को जानते है। भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त शून्य को एक आकार तथा रूप देने के साथ साथ इसको गणित में एक अंक के तरह इस्तेमाल भी किया था। जब के आर्यभट्ट ,ब्रह्मगुप्त के 100 साल पहले ही शून्य को प्रतिक के रूप में इस्तेमाल किया करते थे।
इतिहास में 0 का जिक्र –
भले ही शून्य का कोई आकार नहीं था पहले, फिर भी कई सभ्यता में इसको प्रतिक के रूप में इस्तेमाल किया हुआ है। भारत में अंक के नीचे बिंदु तथा छोटी रेखा की इस्तेमाल होते विभिन्न शिलालेख में मिल जायेंगे।
मेशोपटामिया तथा बेबीलोन में शून्य का जिक्र प्रतिक के रूप में हुआ है। बेबीलोनियन शून्य को दर्शाने के लिए दो कोन के तिरछे आकार के प्रतीक का इस्तेमाल करते थे। जब के मयान सभ्यता में आंख के आकार से शून्य को प्रदर्शित किया जाता था।
शून्य के आविष्कार से मानव समाज को कई सारे फायदे मिले है और इसका श्रेय भारत को जाता है। सोचिये अगर शून्य का कोई रूप न होता तो हम कंप्यूटर में बाइनरी फॉर्मेट कैसे बनाते ! इसके साथ साथ पूरे विश्व भरके संकेतों को हमे याद करना पड़ता कि शून्य को कैसे लिखा जाता है।
आशा है आपको हमारा यह पोस्ट जरूर पसंद आया होगा, इसके साथ साथ आप आज जरूर कुछ नए सीखे होंगे। अपना राय हमे कमेंट बॉक्स में जरीर लिखे।
आपने क्या सीखा ?
हमे आशा है की आपको 0 ki khoj kisne ki ( 0 की खोज किसने की थी ) विषय के बारे में दी गई जानकारी अच्छी लगी होगी। अगर आपको इस विषय के बारे में कोई Doubts है तो वो आप हमे नीचे कमेंट कर के बता सकते है। आपके इन्ही विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिलेगा।
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