How Prime Ministers Decide Book Pdf in Hindi Free Download

How Prime Ministers Decide Book Pdf in Hindi Free Download

हाल ही में, अरविन्द केजरीवाल ने ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ पुस्तक की PDF कॉपी मांग कर सबको चौंका दिया। यह पुस्तक, नीरजा चौधरी द्वारा लिखी गई, इन दिनों खूब सर्च की जा रही है। इसलिए, हम आपके लिए इस पुस्तक की सम्पूर्ण जानकारी, नीचे दी गई है।

अंत में आपको इसका pdf मिलेगा तो अंत तक जरुर पढ़ें.

Intro : How Prime Ministers Decide Book Pdf in Hindi

यह पुस्तक क्यों पढ़नी चाहिए? ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ हिंदी में आपको भारतीय राजनीति के इतिहास में गहराई से ले जाती है, जहाँ प्रधानमंत्रियों के निर्णयों ने न केवल देश को एक शेप दिया बल्कि भविष्य की दशा और दिशा को भी प्रभावित किया। इसे पढ़ना आपके लिए रोचक होगा।

नीरजा चौधरी की इस अद्भुत कृति में, पूर्व प्रधानमंत्रियों के नेतृत्व और निर्णय लेने की जटिल प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है।

प्रधानमंत्री कैसे सोचते हैं ! पुस्तक क्यों पढनी चाहिए ?

यह पुस्तक भारतीय राजनीति की बारीकियों को समझने का एक माध्यम है। लेखिका की गहन शोध और विवरण आपको भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों की सोच और निर्णय लेने की प्रक्रिया को समझने में सहायता करेंगे।

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पुस्तक में इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक, सभी प्रमुख प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल और उनके निर्णयों की चर्चा की गई है।

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Key Focus In How Prime Ministers Decide Book Pdf in Hindi

इंदिरा गांधी की राजनीतिक दृढ़ता, राजीव गांधी के अनिश्चित निर्णय, वी.पी. सिंह के मंडल आयोग के निर्णय, पी. वी. नरसिंह राव के काल के दौरान की घटनाएँ, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व की क्षमता, और मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों पर गहन विचार करने के बाद लिखा गया है।

यदि आप भारतीय राजनीति और इसके प्रमुख पात्रों की गहराई से समझ बनाना चाहते हैं, तो ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ आपके लिए एक अनिवार्य पुस्तक बन जाती है।

Conclusion

राजीव गांधी: उनकी शाह बानो और बाबरी मस्जिद मुद्दे पर उनका अस्थिरता अनिच्छित परिणाम थे। राजीव गांधी पर अध्याय हमें उनके आवश्यक निर्णयों की एक युग के माध्यम से ले जाता है जो भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण थे। वी.पी. सिंह: उनकी अवधि में मंडल का खेल देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।

मंदिर राजनीति भी काफी कवरेज ले रही थी, भविष्य के संघर्षों के लिए राजनैतिक पार्टिया अपना अपना मंच तय कर रही थी। पी. वी. नरसिंह राव: उनकी अवधि, विशेष रूप से बाबरी मस्जिद की ध्वस्ति के दौरान, ध्यान से विश्लेषित की गई है। परदे के पीछे के चलन के सूक्ष्म विवरण पुस्तक को दिलचस्प बनाते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी और नरसिंह राव के बीच आपसी सम्मान देश हेतु अच्छे संकेत देने लगा था। वही आज के समय में मोदी सरकार और विपक्ष के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग नहीं मिल रही हैं।

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