पहला सुख निरोगी काया ( pehla sukh nirogi kaya ) नमस्कार दोस्तों, आपने यह काफी सूना होगा पहला सुख निरोगी काया। यह एक कविता है जिसका अपना अलग ही मतलब है। इसका सीधा मतलब होता की मनुष्य का सबसे पहले लक्ष्य होता है की पहले उसके शरीर में कोई रोग नही हो।
पहला सुख निरोगी काया
यह एक कविता है जिसमे मनुष्य के पुरे जीवन और उससे जुडी जरूरतों को बताया गया है। यह कविता इस प्रकार है।
पहला सुख निरोगी काया,
दूजा सुख घर में हो माया।
तीजा सुख कुलवंती नारी,
चौथा सुख पुत्र हो आज्ञाकारी।
पंचम सुख स्वदेश में वासा,
छठवा सुख राज हो पासा।
सातवा सुख संतोषी जीवन ,
ऐसा हो तो धन्य हो जीवन।
पहला सुख निरोगी काया : एक मनुष्य अपने जीवन में हमेशा यही चाहता है या उसकी पहली जरूरत होती है की उसका स्वास्थ्य सुखी और निरोगी हो।
दूजा सुख घर में माया : शरीर में कोई रोग नही हो और साथ ही मनुष्य के पास जरूरत के हिसाब से पूरा धन हो। उसके पास पैसों की कमी न हो।
तीजा सुख कुलवंती नारी : मनुष्य जीवन में मानव हमेशा ही यह चाहता है उसकी पत्नी कुलवंती हो। पत्नी हमेशा सुख-दुःख में उसका साथ दे। ऐसा महिला जो अच्छे कुल से हो और सदैव अच्छा आचरण करने वाली हो।
चौथा सुख पुत्र हो आज्ञाकारी : शादी के बाद एक मनुष्य हमेशा ही यह सोचता है किसा पुत्र आज्ञाकारी हो और वो हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करें और उनका सम्मान करें।
पंचम सुख स्वदेश में वासा : हर कोई चाहता है की वो अपने देश में ही रहे और वही पर जीवन यापन करे। जहा पर वो जन्म लेते है वही पर उनकी मृत्यु हो और वो ही मिट्टी उन्हें नसीब हो।
छठवा सुख राज हो पासा : हर कोई और हर मनुष्य यह चाहता है उसके जीवन में वो सब कुछ हो जिनकी उन्हें तलाश है। उन्हें सब सुख मिले जिनकी उन्हें जरूरत हो।
सातवा सुख संतोषी जीवन : इसके अलावा सातवा और सबसे अंतिम सुख होता है की उनका जीवन संतोषपूर्व हो। जीवन में कोई समस्या न हो। उन्हें सब सुख मिले।
ऐसा यह हो जाता है एक मनुष्य का जीवन धन्य हो जाएगा।